Saturday, August 29, 2009

ज़िन्दगी जिगज़ेग क्यों है ?

मेरे ज़ेहन की हर दीवार परइक इबारत-सी है चस्पां'ज़िन्दगी ज़िगज़ेग क्यों है...?'सपाट क्यों नहीं है ...?मेरे चीखते सवालों का गूँगे जवाबों नेकभी जवाब नहीं दियाबस ,'ज़िन्दगी ज़िगज़ेग ...ज़िगज़ेग ही रहेगी इक टका-सा जवाब दे दियालेकिन मैं मुतमईन नहीं हूँगर,तुम हो तो...किसी दिन ख़ाब में मुझ को भी बता देनाताकि तुम्हारी तरह मैं भीसपाट,नंगी शाहराहों पर दौड़ना चाहता हूँ

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